भराड़ीसैंण/देहरादून। राजकीय कर्मचारियों की पेंशन के लिए उत्तराखंड सरकार नया अधिनियम लाने जा रही है। शुक्रवार को इसके लिए विधेयक प्रस्तुत भी कर दिया गया है। इस कानून को लाने के पीछे संविदा व अंशकालिक के रूप में सेवाएं देने वाले ऐसे कार्मिकों को पेंशन देने की बाध्यता खत्म करने की मंशा है, जिन्होंने अपनी सेवाओं के बदले पेंशन देने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। विधानसभा में रखे गये उत्तराखंड सेवानिवृत्ति लाभ विधेयक-2018 में पेंशन का असली हकदार एक अक्टूबर 2005 से पहले नियुक्त पूर्णकालिक और मौलिक रूप से नियुक्त कर्मचारियों को ही माना गया है जबकि उसके बाद मौलिक रूप से नियुक्त कर्मचारी अंशदान पेंशन योजना में आच्छादित होंगे। इस विधेयक में अन्य तरीकों से सेवा देने वाले कर्मचारियों को पेंशन देने की बाध्यता खत्म करने के लिए कई शर्त रखी गयी हैं। अंशकालिक, दैनिक वेतनभोगी, तदर्थ या फिर नियत वेतन में दी गयी सेवा वाले ऐसे कार्मिकों को पेंशन का पात्र नहीं माना जाएगा। इसके साथ ही पूर्णकालिक नियोजन न करने वाले कार्मिक भी पेंशन के हकदार नहीं होंगे। अधिवर्षता आयु पूर्ण करने के बाद सेवाविस्तार, पुनिर्नियोजित व सत्रांत लाभ के रूप में की गयी सेवा भी पेंशन लाभ में नहीं आएगी। एक सेवा से दूसरी सेवा के बीच व्यवधान, एक पद से दूसरे पर स्थानान्तरण के फलस्वरूप कार्यभार ग्रहण काल के अतिरिक्त गैर अनुमन्य अनुपस्थिति भी पेंशन में बाधा बनेगी। अधिनियम के अनुसार बिना स्वीकृत उपभोग किये गये अवकाश अवधि, सेवा में किसी भी प्रकार की ऐसी अनुपस्थिति जिसकी स्वीकृति के लिए अवकाश शेष न हो, को भी पेंशन लाभ के लिए अपात्र माना जाएगा। इस अधिनियम के पारित होते ही पूर्व में पारित अधिनियमों में दिये गये नियमों को स्वत: निष्प्रभावी माना जाएगा। इस विधेयक के अनुसार अब पेंशन के लिए सिर्फ वही कार्मिक पात्र होंगे जो अंशदायी पेंशन योजना लागू होने से पहले राज्य की सेवा में मौलिक व नियमित रूप से आये। सेवा को तभी अर्हकारी समझा जाएगा जब संबंधित कर्मचारी किसी अधिष्ठान में स्थायी/अस्थायी रूप से सृजित किसी पर पर मौलिक रूप से नियुक्त हुआ हो। अधिनियम में पेंशन की राशि का भी उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार पेंशन की राशि सेवा के अंतिम दिवस को आहरित मूल वेतन अथवा सेवानिवृत्ति तिथि से पूर्व के 10 माह के औसत वेतन, जो भी कार्मिक के लिए लाभकारी हो, के 50 फीसद होगी। उक्त राशि किसी भी दशा में राज्य सरकार द्वारा विहित न्यूनतम पेंशन की धनराशि से कम और ज्यादा नहीं होगी।