महिलाओं की शिक्षा ही उनके सशक्तिकरण का सबसे कारगर अस्त्र: स्वामी चिदानंद सरस्वती

शिक्षा के दीप से करें हर घर को रौशन

देहरादून,( गढ़वाल का विकास न्यूज)। आज 19वीं सदी के महान विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक और एक सामाजिक क्रांतिकारी कार्यकर्ता ज्योतिराव फुले की पुण्यतिथि है। उन्होने जीवन भर आधुनिक शिक्षा को उन जातियों और समुदायों तक पहुंचाने का कार्य किया जिनकी पहुंच शिक्षा तक नहीं थी। उनका मानना था कि नारियों और समाज के वंचितों की मुक्ति का एक ही अस्त्र है ’शिक्षा’। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 19 वीं सदी में भारत में जातिवाद का बोलबाला होते हुये भी जिन जातियों के लोगों से भेदभाव किया जाता था उनकी कन्याओं के लिये कई विद्यालय खोले तथा उन्होने महाराष्ट्र में ‘सत्य शोधक समाज’ नामक संगठन का गठन किया।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि 21 वीं सदी में भी भारत के कुछ राज्य ऐसे है जहां पर नारियों की शिक्षा पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। अगर बेटियों कोे शिक्षित किया जाये तो समाज में व्याप्त कई सामाजिक बुराइयों यथा दहेज प्रथा, कन्या भूण हत्या, महिला उत्पीड़न और महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों को कम किया जा सकता है। महिलाओं की शिक्षा ही उनके सशक्तिकरण का सबसे कारगर अस्त्र है। इससे देश का आर्थिक विकास तो होगा ही साथ ही एक शिक्षित समाज का निर्माण भी होगा।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि एक ओर तो भारत की बेटियों ने हर क्षेत्र में प्रगति की और राष्ट्र के विकास में अपना योगदान प्रदान किया है। हमारा देश भी दुनिया की महाशक्ति बनने की ओर कदम बढ़ा रहा है तथा सुपर पॉवर बनने के लिये तेजी से हम प्रगति कर रहे हैं, परंतु दूसरी ओर लैंगिक असमानता आज भी हमारे समाज में व्याप्त है। पूज्य स्वामी जी ने कहा कि समाज में व्याप्त अनेक समस्याओं का समाधान हम बेटियों को शिक्षित कर निकाल सकते हैं। आईये इस शिक्षा के दीप को घर-घर तक  पहुचायें   और समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा से जोड़ें।
शिक्षा के प्रबल समर्थक श्री ज्योतिबा फुले जी ने बाल विवाह का जमकर विरोध किया तथा वे विधवा विवाह के समर्थक थे। उनका मानना था की शिक्षा पर सभी का अधिकार है। शिक्षा को जातिवाद के आधार पर नहीं बांटा जाना चाहिये। समाज के सभी वर्गो को समाज शिक्षा का अधिकार देने के प्रबल समथर्क थे। वे महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिये पूरा जीवन कार्य करते रहे। उन्होने नारियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिये देश का पहला महिला विद्यालय खोला और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सावित्रीबाई फुले जो कि भारत की पहली महिला शिक्षक और बालिका विद्यालय की पहली प्राचार्याा बनी।

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