उत्तराखंड : 2671 गंभीर अपराधों के मुकदमों में अभियुक्त बरी

कुल 81256 मुकदमों में सजा तथा 7395 में मिली रिहाई
देहरादून। उत्तराखंड गठन के वर्ष 2000 से फरवरी 2018 तक उधमसिंह नगर जिले में सत्र न्यायधीशों द्वारा विचारण किये गये गंभीर मुकदमों में केवल 717 मुकदमों में सजा हुई है जबकि 2671 मुकदमों में अभियुक्तों को दोषमुक्त करके रिहा किया गया है। उधमसिंह नगर जिले के न्यायालयों में इस अवधि में कुल 81256 मुकदमों में सजा हुई है तथा 7395 मुकदमों मंे रिहाई हुई है। उक्त खुलासा सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन को उपलब्ध करायी गयी सूचना से हुआ है।
काशीपुर निवासी सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन ने अभियोजन निदेशालय से मुकदमों में सजा और रिहाई सम्बन्धी सूचना मांगी। इसके उत्तर में संयुक्त निदेशक अभियोजन कार्यालय उधमसिंह नगर के लोक सूचना अधिकारी/सहायक अभियोजन अधिकारी ने 13 मार्च 2000 से फरवरी 2018 तक की सूचना वर्षवार उपलब्ध करायी है। उपलब्ध करायी गयी सूचना के अनुसार भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) के अपराधों के सत्र न्यायधीशों (जिला जज, अपर जिला जज आदि) द्वारा फैसला किये गये कुल 717 मुकदमों में ही दोष सिद्ध होकर सजा मिली है जबकि इससे तिगुने से भी अधिक 2671 मुकदमों में दोष मुक्त होकर रिहाई मिली है जबकि अन्य निचले न्यायालयों में ऐसे 6581 मामलों में सजा तथा 1735 मामलों में रिहाई मिली है। सत्र न्यायाधीशों द्वारा हत्या, लूट, डकैती, अपहरण, बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों के मुकदमों का फैसला किया जाता है।
उपलब्ध सूचना के अनुसार अन्य कानूनों में सत्र न्यायालयांें के विचारणीय 2441 मुकदमों में सजा हुई है जबकि 1219 मामलों में रिहाई मिली है। अन्य निचले न्यायालयों द्वारा विचारणीय अन्य कानूनों के अपराधों के मामले में 71457 मुकदमों में सजा तथा 1770 मामलों में रिहाई हुई है। इन मामलों में मोटर वाहन चालान आदि के संक्षिप्त विचारण वाले छोटे मामले भी शामिल होते हैं। आई.पी.सी. के गंभीर अपराधों में फरवरी 2018 तक जिन 717 मुकदमों में सजा हुई है उसमें 2018 में केवल 1 मुकदमें में सजा हुई है। वही 2012 में सर्वाधिक 90 मामलों में सजा हुई है जबकि रिहाई वाले 2671 मामलों में से 2012 में सर्वाधिक 279 मामलों में रिहाई हुई है।
श्री नदीम के उपलब्ध वर्षवार सूचना के अनुसार सन 2000 में आई.पी.सी. के गंभीर अपराधों में दंडनीय 24 मामलों में सत्र न्यायालयों से सजा हुई है जबकि 169 मामलों में अभियुक्तों को दोषमुक्त करके रिहा किया गया है। जबकि सन 2001 में 27 को सजा 149 को रिहाई, 2002 में 50 को सजा 205 को रिहाई, 2003 में 78 को सजा 252 को रिहाई, 2004 मेें 61 को सजा 144 को रिहाई, 2005 में 35 को सजा 217 को रिहाई, 2006 में 14 को सजा 58 को रिहाई, 2007 में 46 को सजा 131 को रिहाई, 2008 में 23 को सजा 87 को रिहाई, 2009 में 11 को सजा 91 को रिहाई, 2010 में 49 को सजा 119 को रिहाई, 2011 में 38 को सजा 135 को रिहाई, 2012 में 90 को सजा 279 को रिहाई, 2013 में 89 को सजा 172 को रिहाई, 2014 में 46 को सजा 162 को रिहाई, 2015 में 44 को सजा 125 को रिहाई, 2016 में 41 को सजा 93 को रिहाई, 2017 में 10 को सजा 72 को रिहाई जनवरी 2018 मे 1 को सजा 5 को रिहाई तथा फरवरी 2018 में किसी को सजा नहीं जबकि 6 को रिहाई मिली है।
श्री नदीम ने कहा कि इस सूचना से यह तथ्य प्रकाश में आया है कि कुल 7395 गंभीर मुकदमों में अभियुक्तों को गलत व बिना पर्याप्त सबूत के फंसाया गया था जिन्हें न्यायालय ने बरी किया है। इसमें भारतीय दंड संहिता के अन्तर्गत सेशन न्यायालय द्वारा सुने जाने योग्य हत्या, लूट, डकैती, अपहरण, बलात्कार आदि अपराधों के 2671 मुकदमें शामिल है। इससे साबित होता है कि इन मुकदमों के वास्तविक अपराधियांे को पुलिस द्वारा पकड़ा ही नहीं गया है और उन्हें न तो सजा हुई है और न ही इन अपराधों के पीड़ित को न्याय ही मिला है। इस माम ले में कड़ी कार्यवाही करने की आवश्यकता है ताकि न तो किसी को झूठा फंसाया जा सके और न ही कोई अपराधी सजा से बच सके।

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