इस मंदिर में होती है कुत्ते की पूजा

नई दिल्ली। आप भले विश्वास न करे, लेकिन यह सच है। देश में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां कुत्ते को पूजा जाता है। यह मंदिर है छत्तीसगढ़ के खपरी गांव में। कुकुरदेव नामक इस मंदिर में कुत्ते की पूजा की जाती है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में दुर्ग जिले के खपरी गांव में कुकुरदेव नामक एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यह किसी देवी-देवता को नहीं बल्कि कुत्ते को समर्पित है। हालांकि इस मंदिर में शिवलिंग और अन्य प्रतिमायें स्थापित है, लेकिन इसके बावजूद इसे एक कुत्ते का ही मंदिर ही कहा जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से कुकुर खांसी व कुत्ते के काटने जैसी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है। बताया जाता है कि कुकुरदेव नाम के मंदिर के समीप ही मालीधोरी नामक गांव है जिसका नामकरण मालीधोरी बंजारा के नाम पर हुआ है, जिसके कुत्ते के नाम पर इस मंदिर को बनाया गया है। इस मंदिर में हालांकि किसी का इलाज तो नहीं होता, लेकिन श्रद्धालुओं में इस बात को लेकर पूरा विश्वास है कि यहां आने से लोग ठीक हो जाते है। इसके अलावा कई लोग तो कुकुरदेव मंदिर का बोर्ड देखकर उत्सुकता से भी यहां आ जाते हैं।
मंदिर की बनावट
बताते हैं इस मंदिर का निर्माण फणी नागवंशी शासकों द्वारा १४वीं-१५ वीं शताब्दी में कराया गया था। मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की प्रतिमा स्थापित है और उसके बगल में एक शिवलिंग भी है। ये मंदिर २०० मीटर के दायरे में फैला है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर भी दोनों ओर कुत्तों की प्रतिमा लगाई गई है। लोग शिव जी के साथ कुत्ते (कुकुरदेव) की वैसे ही पूजा करते हैं जैसे सामान्य रूप से शिव मंदिरों में नंदी की पूजा होती है। मंदिर के गुंबद पर चारों दिशाओं में नागों के चित्र बने हुए हैं। यहां उस काल के शिलालेख भी रखे हैं और इन पर अस्पष्ट रूप से बंजारों की बस्ती, चांद-सूरज और तारों की आकृति बनी हुई है। यहां पर राम लक्ष्मण और शत्रुघ्न की एक प्रतिमा भी रखी गई है। इसके अलावा एक ही पत्थर से बनी दो फीट ऊंची गणेश प्रतिमा भी स्थापित है।
क्या है मंदिर की कहानी
मान्यता है कि कभी यहां बंजारों की बस्ती थी। जिसमें मालीघोरी बंजारा अपने पालतू कुत्ते के साथ रहता था। एक बार अकाल पड़ने के कारण उसको अपने कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा। साहूकार के घर चोरी होती है और कुत्ता चोरों को समीप के तालाब में समान छुपाते देख लेता है। अगले दिन कुत्ते के कारण साहूकार को चोरी का सामान मिल जाता है। इस से प्रसन्न होकर साहुकार सारी बात एक कागज में लिखकर कुत्ते के गले में बांध कर असली मालिक के पास जाने के लिए मुक्त कर देता है। अपने कुत्ते को लौटकर आया देखकर बंजारा डंडे से पीट-पीटकर उसे मार डालता है। बाद में उसके गले में बंधे पत्र को पढ़कर उसे अपनी गलती का एहसास होता है और वह अपने प्रिय स्वामी भक्त कुत्ते की याद में मंदिर प्रांगण में ही उसकी समाधि बनवा देता है। बाद में किसी ने कुत्ते की मूर्ति भी स्थापित कर दी। यही स्थान कुकुरदेव मंदिर के नाम से विख्यात है।

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