देहरादून। शिक्षक संगठनो के कड़े रूख के चलते शिक्षा मंत्री के फरमानों को अमली जामा पहनाने में अफसरों को पसीना बहाना पड़ रहा है, लेकिन अभी भी ज्यादातर आदेशों को लागू करवा पाने की संभावना नहीं दिख रही है। बताया जा रहा है कि चहेतों को एडजस्ट करने व जरूरतमंदों को दरकिनार करने के सरकार के रवैये से शिक्षक संगठनों में खासी नाराजगी है। फिलहाल एक-दो आदेश ऐसे हैं, जिनको लेकर विभाग में माहौल गर्म हो गया है।
पहला ड्रेस कोड को लेकर अफसर चुप्पी साध गये हैं। पहली अप्रैल से इसे लागू करवाने की बात कर रहे अधिकारी अब इस मामले में कुछ भी नहीं बोल रहे हैं। शिक्षक संघों ने एक स्वर से इस आदेश का विरोध कर दिया है। शिक्षक संघों से वर्दी भत्ता देने की नई मांग रखकर विभाग के इस आदेश पर पलीता लगाने में कोई कसर नही छोड़ी है। विभागीय स्तर पर ही इस मामले में जारी हुए कई तुगलकी फरमानों के चलते शिक्षकों को आगे बढ़कर विरोध करने का मौका मिला। विभाग ने कभी तो अपर निदेशकों को शिक्षक संघों के साथ मिलकर ड्रेस तय करने का आदेश दिया तो संघों के साथ वार्ता होने से पहले ही ड्रेस तय करने का आदेश भी जारी कर दिया गया। इस आदेश के बाद फिर से एक नया आदेश आया कि हर जिले में अलग ड्रेस होगी। यहीं से शिक्षकों ने विरोध शुरू किया।
सके साथ ही शिक्षक संगठनों ने आठ किलोमीटर के दायरे में निवास करने के फरमान को भी पूरी तरह ठुकरा दिया है। उनका कहना है कि यह व्यवस्था उस दौर की है, जब शिक्षकों को स्कूलों तक पहुंचने के लिए पैदल सफर करना पड़ता था। अब चूंकि ज्यादातर स्कूलों में सड़क पहुंच गयी है, ऐसे में आठ किलोमीटर के दायरे में रहने का आदेश भी अव्यवहारिक है। बताया जा रहा है कि शिक्षा मंत्री के इन आदेशों को नहीं मानने के पीछे बड़ी वजह दूसरी है। शिक्षकों को अनुरोध के आधार पर तबादले का अवसर देने का आदेश हुआ। इसके बाद शिक्षकों ने आवेदन भी कर दिया, लेकिन ऐन मौके पर शिक्षामंत्री ने तबादला सत्र शून्य घोषित कर दिया। जबकि एक भाजपा नेता की पत्नी को एडजस्ट करने के लिए सारे कायदे कानून ताक पर रख दिये गये।